लेखनी कहानी -11-Sep-2022... कामवाली बाई....
कामवाली बाई.....
इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं... लेकिन शायद बहुत लोगों के घरों की सच्चाई भी हो सकतीं हैं...। कुछ अनुचित या गलत लगे तो क्षमा करें..।
दरवाजे की घंटी बजी...
किरण ने दरवाजा खोला और खोलते ही सामने माल्टी को देखकर भड़क गई...।
आ गई महारानी.... तुझे कल बोला था ना जल्दी आने को.... बताया था ना आज साहब को जल्दी आफिस जाना हैं...।
सारी मेमसाब... वो मेरे लड़के की तबीयत कल रात से अचानक खराब हो गई.. अभी सवेरे सवेरे उसको दवाई लेकर दी...।
बस कर..बस कर.... तुम लोगो के तो एक से बढ़कर एक बहाने तैयार रहते हैं... तुमको जरा़ भी शर्म नहीं आती... ऐसे झूठ बोलते हुवे...।
नहीं मेमसाब.... मैं झूठ नहीं बोल रही.... सच कह रहीं हूँ... ।
हाँ हाँ पता हैं कितना सच बोल रहीं हैं... सब समझतीं हूँ मैं...। अभी यही खड़ी रहेगी या भीतर आकर काम पर लगेगी...।
जी... मेमसाब...।
जा जल्दी से पहले साहब के लिए नाश्ता बना कर ला... फिर बर्तन साफ़ कर...।
जी मेमसाब...।
अरे माल्टी... रुको.... तुम नाश्ता रहने दो मैं बाहर से खा लूंगा...। तुम दूसरे काम कर लो..। (राजीव )
बाहर का क्यूँ खाओगे.... वो बना लेगी...। कोई जरूरत नहीं हैं बाहर का खाने की.. तुम यहाँ खड़े खड़े मुंह मत देखो... जाओ जल्दी नाश्ता बनाओ...।
माल्टी किचन की ओर चल दी...। किचन में जाकर देखा तो पूरा किचन अस्त व्यस्त पड़ा हुआ था...। वो कुछ पल तो समझ ही नहीं पाई... शुरुआत कहाँ से करे...।
बाहर राजीव किरण से... :- तुमने किचन की हालत देखी हैं... एक चीज ठिकाने पर नहीं है... लगभग सारे बर्तन सिंक में रखे हुवे हैं...। वो कैसे इतनी जल्दी सब काम कर पाएगी...। क्या जरूरत हैं तुम्हें इतने बर्तन निकालने की और ऐसे यहाँ वहाँ सामान रख देने की..।
आप ज्यादा उसकी साईड मत लो... मुझे पता हैं... इन बाईयो को कैसे ठिकाने लगाया जाता हैं...। आप अपने काम से काम रखो...।
लेकिन किरण....इंसानियत भी तो कोई चीज़ होतीं हैं ना...।
आप ये अपना इंसानियत का पाठ मत पढ़ाया करो मुझे बार बार...। अरी माल्टी नाश्ता बना की नहीं अभी...।
बन गया मेमसाब... बस ला रहीं हूँ..।
माल्टी फटाफट से दो टोस्टर बनाकर और जूस का गिलास लेकर बाहर आई :- लिजीए साहब.... नाश्ता..।
रख दो टेबल पर माल्टी.. (राजीव)
अच्छा सुन बर्तन साफ़ करके फटाफट से आयुष को उठाकर तैयार कर दे...।
जी मेमसाब....आपके लिए नाश्ता ले आऊं...?
तुझे पता हैं ना मैं ये सब नहीं खाती....!
अरे नहीं... मेमसाब....आपके लिए तो वो अंडा बनाया हैं..।
नहीं अभी रहने दे... मैं बाद में खा लूंगी...। तु जा अभी... सारा काम पड़ा हैं.. जल्दी जल्दी कर...।
माल्टी किचन की तरफ जाने को हुई.. उसी वक्त राजीव ने रोकते हुवे पूछा :- वैसे तुम्हारे बेटे को क्या हुआ हैं माल्टी..!
साहब वो कल रात को अचानक से उसके पेट में बहुत दर्द होने लगा.. फिर बुखार भी आया..। अब आधी रात को कहाँ जाती.. पूरी रात उसे गोद में लेकर बैठी रहीं... सवेरे होते ही सरकारी अस्पताल से दवाई लेकर दी... अभी दवाई देकर सुला कर आई हूँ...।
खिला दिया होगा तुने ही कुछ उल्टा सीधा... तभी दर्द हुआ होगा.. तुम लोग भी ना यहाँ वहाँ से कुछ भी लेकर दे देते हो अपने बच्चों को फिर दवाईयों के पीछे भागते रहते हो...। छोड़ो राजीव... तुम अपना नाश्ता खाओ... इनका तो रोज़ का हैं... बाहर का गंदगी में रखा हुआ खुला खाना खाएंगे तो बीमार ही पड़ेगे ना...।
अरे नहीं मेमसाब.... मैं चिंटू को बाहर का कुछ भी खाने को नहीं देती.. सब घर ही बनाकर देतीं हैं... पर पता नहीं कल कैसे.... वो रात को ना आपका वाला केक खा लिया था... शायद वो ही हज़म नही हुआ उसे...।
किरण गुस्से से :- तु कहना क्या चाहतीं हैं माल्टी... मैंने तुझे बासी केक दिया... मेरा केक खाकर तेरा लड़का बिमार पड़ा... एक तो मैं तेरे बच्चे का सोचूँ... और तु मुझ पर ही उंगली उठा रहीं हैं...।
अरे नहीं मेमसाब... मैं आपको गलत नहीं बोल रहीं... वो हम लोगो को आदत नहीं हैं ना ऐसी चीज़े खाने की... इसलिए शायद मेरे लड़के से हजम नही हुआ.... ऐसा कह रहीं थीं...।
राजीव :- माल्टी.... तुम जाओ... अपना काम करो...।
माल्टी जी साहब बोलकर भीतर चलीं गई... और अपने काम में लग गए ई..।
किरण :- देख लिया तुमने राजीव...इन लोगों को सिर पर चढ़ाने का नतीजा.... अरे मेरे ऊपर उंगली उठा रहीं हैं... देखा तुमने..
किरण तुम गलत ले रहीं हो.... उसने ऐसा बिल्कुल भी नहीं कहा... और अगर कहा भी तो गलत क्या कहा...! कब आया था हमारे घर वो केक... दस दिन पहले.. दस दिन से वो फ्रिज में रखा सड़ रहा हैं..। परसो जब आयुष ने तुमसे मांगा था खाने को तो तुमने क्या कहा था... बेटा ये बहुत दिनों का रखा हुआ हैं.. हम कल फ्रेश ले आएंगे..। अगर उस केक को आयुष नहीं खा सकता तो माल्टी का बच्चा कैसे खा सकता हैं..! क्या वो बच्चा नहीं हैं..। मैने बहुत बार तुम्हें देखा हैं किरण.... फ्रिज में रखी कोई सब्जी हो.. फल हो.... जो तुम्हारे खाने लायक ना रहीं हो तो उठाकर माल्टी को दे देती हो... और ऐसे जताती हो जैसे उसपर कोई अहसान कर रहीं हो...। अरे जो चीज़ हम नहीं खा सकते.... जिसे खाने से हम बिमार पड़ सकतें हैं.. वो चीज़ कामवाली को दे देना.... ये कहाँ का न्याय हैं...। देना ही हैं तो ताज़ा और फ्रेश दो ना.... बासी... बचा हुआ.. सड़ा हुआ क्यूँ..!!
क्या वो इंसान नहीं हैं...। आज उसका बेटा सच में तुम्हारी वजह से बिमार हुआ हैं किरण.. तुम चाहे मानों या ना मानो..।
उसका पति उसे छोड़कर चला गया... वो चाहतीं तो अपने बच्चे को लेकर सड़क पर भीख मांग कर गुजारा कर सकतीं थीं.. । लेकिन नहीं.... उसका आत्मविश्वास नहीं मरा था... वो मेहनत करती हैं.. ना जाने कितने घरों में कितना काम करती हैं..। जैसे मैं एक कंपनी में मेहनत करता हूँ वैसे वो भी मेहनत करती हैं..। कभी अगर मुझे मेरा बॉस अचानक से बहुत सारा काम दे देता हैं तो तुम कैसे उस के लिए गलत गलत बोलती हो.... तुम खुद भी तो माल्टी के साथ ऐसा ही करतीं हो ना.... फिर किसी ओर को गलत क्यूँ..!
मैं हर रोज़ तुम्हें देखता हूँ... बिना वजह तुम बर्तन इस्तेमाल करतीं हो... फिर उन्हें सिंक में रखती जाती हो... । बेहिसाब कपड़े धोने में डाल देतीं हो...। जब माल्टी नहीं थी.... तब तुम मुझे एक पैंट को दो दिन पहनने को बोलतीं थीं... अब..!अब दिन में दो बार बदलने को कहती हो... ना सिर्फ मेरे कपड़े... तुम खुद भी दिन में तीन जोड़ी कपड़े बदलतीं हो...और आयुष....उसकी तो कोई लिमिट ही नहीं हैं..। क्यूँ... क्योंकि तुम्हें नहीं धोने पड़ते... माल्टी हैं ना...!
वो हमारे यहाँ काम करतीं हैं किरण.... जैसे मैं आफिस में करता हूँ...। वो नौकरी करतीं हैं.... लेकिन हमारी नौकर नहीं हैं...।
सबसे पहले वो एक इंसान हैं.... जिस दिन तुम्हें ये बात समझ आ जाएगी ना.... उस दिन तुम्हें अहसास होगा... की तुम कितनी गलत हो...।
राजीव ऐसा कहकर आफिस की ओर चल दिया...। किरण बहुत देर तक राजीव की कही बातों के बारे में सोचती रहीं..। राजीव पहले भी उसे बहुत बार टोक चुका था पर किरण हमेशा राजीव पर चढ़ जाती थीं...। लेकिन आज राजीव की बातें उसके भीतर तक समा गई थीं...। किरण उठीं और माल्टी के पास गई और कहा :- माल्टी... ये सब छोड़... आज तु घर जा... अपने बेटे का ध्यान रख... बाकी काम कल आकर कर लेना...। आज सभी जगह से छुट्टी ले ले... और सुन ये कुछ पैसे रख और अपने बच्चे का अच्छे अस्पताल में इलाज करवा...।
अरे नहीं नहीं मेमसाब... मैं कर लेगी सारा काम... बस हो ही गया...। आप टेंशन मत लो...। बाकी जगह तो आज में मना ही करके रखा हैं..। वो आपने कल जल्दी बुलाया ना मेमसाब इसलिए आई...और ये पैसे भी नहीं चाहिए मेमसाब...अभी पगाऱ में समय हैं..। अभी ले लिए तो महीने का हिसाब गड़बड़ हो जाएगा...।
ये तेरी तन्ख्वाह में से नहीं काटूंगी माल्टी.... ये मेरी गलती का पश्चाताप समझ कर रख ले....।
कौनसी गलती मेमसाब...?
वो सब मत पूछ.... बस तु ये रख और घर जा.... बाकी काम में देख लूंगी... ।
माल्टी पैसे लेते हुवे :- बहुत बहुत धन्यवाद मेमसाब...।
Pallavi
13-Sep-2022 06:28 PM
Nice post
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Chirag chirag
13-Sep-2022 05:04 PM
Very interesting
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Palak chopra
12-Sep-2022 09:16 PM
Bahut khoob 🙏🌺
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